History of Mother's Day : मदर्स डे का इतिहास

भारत का पश्चिमीकरण एक गंभीर समस्या है एवं यह सिर्फ रहन-सहन, खान-पान और कपड़ों से आगे बढ़ परंपराओं और त्यौहारों तक जा पहुंचा है। हालांकि भारतीय समाज विश्व के सभी तत्वों को आत्मसात करने और अपने अनुकूल ढालने में संकोच नहीं करता और न ही अन्य देशों की तरह प्रतिबंध लगाकर विचारों के प्रवाह को रोकता है।  कई बार पश्चिमी परंपराओं का निर्वहन करते करते हम स्वयं के विचारों को कुदृष्टि से देखने लगते हैं और यहाँ से शुरू होता है स्वयं पर अविश्वास। विदेशी परम्पराएं, त्यौहार आदि भारत के लिए खतरा नहीं हैं जबतक हम अपने स्वयं के परंपराओं और त्यौहारों को न भूलने लगें या स्वयं को कम आँकने लगें।

सोशल मीडिया के इस युग में एक समस्या यह भी है कि पश्चिमी से विचार इस प्रकार भारतीय दिमाग पर हावी होते हैं कि हमको उन विचारों को समझने और जानने का समय ही नहीं मिलता। पश्चिम से आया फेमिनिज़म भारत में पनपने लगा परंतु इसके पीछे के कारण और इसके शुरू होने कि वजह से आज भी भारतीय युवा पीढ़ी अपरिचित है।   

अवसर Mother's Day का है और मेरा प्रयास मदर्स डे से युवाओं को परिचित कराने का है। अमेरिका से शुरू हुआ यह त्यौहार मूलतः कैथोलिक ईसाइयो का है। यह दिन वर्जिन मैरी को समर्पित है। वर्जिन मेरी ईसाई धर्म से जुड़ा किरदार है। 'एना जार्विसने इस धार्मिक त्यौहार को थोड़ा बदला। ग्रीस में भी एक त्यौहार मेट्रोनलिया जो जूनो को समर्पित थामनाया जाता था। यह ग्रीक देवताओ को समर्पित था। यह यूरोप में मदर्स दे का सबसे मूल उद्भव था।



पश्चिमी दुनिया में महिलाओं नें काफी लंबे समय तक भेदभाव और शोषण का जीवन व्यतीत किया है। न ही उनके पास अधिकार थे, न समाज में पुरुषों के बराबर हक। प्राचीन एथेंस में जोकि पश्चिमी सभ्यता का उद्गम है, वहाँ स्त्रियों को गुलाम व शारीरिक शोषण के लिए खरीदा व बेचा जाता था। प्राचीन ग्रीस में तो बुरा हाल था ही लेकिन आधुनिक यूरोप में भी महिलाओं को समान अधिकार के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। वोट देने के अधिकार के लिए एक लंबा आंदोलन हुआ।  कुलमिलाकर महिलाओं की इस निम्न स्थिति के कारण और परिणामस्वरूप हुए महिलाओं के संघर्ष के कारण समाज में काफी परिवर्तन हुए और यही एक कारण था कि समय के साथ मदर्स दे में महिलाओं का जुड़ाव हो गया और त्यौहार स्त्री केंद्रित हो गया।  इसी कारण शुरुआत में यह त्यौहार जो सिर्फ और सिर्फ वर्जिन मैरी से सम्बंधित था उसे बीसवीं सदी में एना जार्विस ने आसपास की महिलाओं को उपहार देनेखाना खिलाने व् सम्मान देने का अवसर बना दिया।

एना जार्विस के बाद यह महिलाओं के जगह केवल माँ तक सीमित हो गया और इसका प्रचलन तब ज्यादा बढ़ जब इस  त्यौहार का व्यवसायीकरण हुआ। बाजार से खरीदे गए ग्रीटिंग कार्ड को भेंट में देनाबाजार से तरह तरह के गिफ्ट खरीदकर महिलाओं को देने जैसे कार्य लोग करने लगे। बढ़ता बाजारीकरण देखकर ऐना जार्विस ने इस त्यौहार को समाप्त करने का प्रयास किया और मदर्स दे का विरोध किया।

 मदर्स दे आज पश्चिमी दुनिया और विशेषकर ईसाई देशों में मनाया जाता है जोकि उसी बाजारीकरण के सिद्धांतों से प्रचलित किया जाता है। हालांकि अलग अलग देशों जैसे भारत में जब यह त्यौहार आया तो समाज नें अपने अनुसार अपनाया और मौजूदा स्वरूप हमारे सामने है। हम इसको माँ के सम्मान से जोड़कर देखते हैं और एक ऐसे दिन के रूप में मनाते हैं जोकि माँ के लिए समर्पित है। हमने अपने मूल विचारों को जोकि माँ के प्रति श्रद्धा और सम्मान देना सिखाते हैं, उनका उपयोग कर इस त्यौहार को अपना लिया परंतु बाजारीकारण हमारे समाज में भी हावी हो रहा है।  

मदर्स डे यानि माँ का दिन, वह दिन जो माँ के लिए समर्पित है, अलग अलग देशों में अलग अलग परंपराओं अनुसार मनाया जाता है। यानि हर समाज में यह परंपरा रही है लेकिन उन्होनें पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण नहीं किया।

ईरान में मुहम्मद की बेटी फातिमा का सालगिरह 20 जुमादा अल-ठानी को मनाया जाता है। यह ईरानी क्रांति के बाद बदल दिया गया थाइसका कारण नारीवादी आंदोलनों के सिद्धांतों को हटा कर पुराने पारिवारिक आदर्शों के लिए आदर्श प्रतिरूप को बढ़ावा देना था। जापान में प्रारम्भ में मातृ दिवस जापान में शोवा अवधि के दौरान महारानी कोजुन (सम्राट अकिहितो की मां) के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था।

नेपाल में बैशाख महीने के कृष्ण पक्ष में अमावस्या के दिन पड़ने वाले माता तीर्थ औंशी त्यौहार जीवित और स्वर्गीय माताओं के स्मरणोत्सव और सम्मान में मनाया जाता हैजिसमें जीवित माताओं को उपहार दिया जाता हैं तथा स्वर्गीय माताओं का स्मरण किया जाता हैं। नेपाल की परंपरा में माता तीर्थ की तीर्थयात्रा पर जाना प्रचलित हैं जो काठमांडू घाटी में स्थित हैं। प्राचीन समय में भगवान श्री कृष्ण की मां देवकी प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए घर से बाहर निकल गईं । उन्होंने कई स्थानों का दौरा किया और घर लौटने में बहुत देर कर दी। भगवान कृष्ण अपनी मां के न लौटने पर दुखी हो गए। वे अपनी मां की तलाश में कई स्थानों पर घूमते रहे परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। अंत मेंजब वह "माता तीर्थ कुंड" पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनकी मां तालाब के फुहार में नहा रही हैं। इस कहानी से भी यह त्यौहार जोड़ा जाता है। भगवान कृष्ण और उनकी माँ से मिलन कर कारण यह स्थान एक पवित्र तीर्थयात्रा बन गया हैं जहां श्रद्धालु एवं भक्तगण अपनी स्वर्गीय माताओं को श्रद्धा अर्पण करने आते हैं।

थाईलैंड में मातृत्व दिवस थाइलैंड की रानी के जन्मदिन पर मनाया जाता है। ब्रिटेन में मदर्स दे ऐतिहासिक क्रूर घटनाओं पर आधारित है जब नबलिगों को मजदूर बना कर रखा जाता था। कई बार चर्च भी मजबूरन बच्चों को धार्मिक शिक्षा देते थे ,साथ में मजदूरी भी करवाते थे और माँ बाप से मिलने नही देते थे। बाद में साल का एक दिन माँ से मिलने के लिए निश्चित किया गया और यही वहाँ मदर्स दे बना। भारत में माँ को समर्पित अनगिनत त्यौहार, परम्पराएं हैं जबकि हमने अमेरिका के मदर्स दे जोकि मई के दूर रविवार को मनाया जाता हैको भी अपना लिया।

मई के दूसरे रविवार को मनाए जाने वाले इस मदर्स डे को उचित कहना कितना ठीक है और कितना गलत, यह आँकलन हम स्वयं कर सकते हैं। प्रश्न यह भी है कि क्या परंपराओं का निर्वहन पश्चिमी चश्मे से किया जाना ठीक है। वर्ष में एक दिन मातृ दिवस मनाने वाला हमारा समाज वर्ष के अन्य दिनों में भी माँ को वहीं सम्मान देना न भूले, यह भी आवश्यक है। भारत की सभी परम्पराएं, वृत एवं त्यौहार मातृशक्ति से जुड़े होते हैं और वर्ष में अनेक दिन इसी को याद कराते हैं कि स्त्रियों का सम्मान हमारी परंपरा का अभिन्न अंग है। अगर हम चाहें तो मई के दूसरे रविवार को इतना महत्व न देकर अपने परंपरागत दिनों पर भी माँ के प्रति प्रेम प्रदर्शन व सम्मान देने का दिवस मना सकते हैं।


Comments

  1. We have accepted Mother's day into our culture, not because of our sheepish tendencies, as is the case with many of our festivals, but not Mother's day. We never feel that we have praised our Mother enough to have enough time dedicated towards her. Even though, we celebrate Mother's day with equal vigour as the westerners, but our outlook towards it is completely different. Many Indians still view their Mother's as the greek godess Gaia, who is the ultimate supporter and helper. A literal God among humans, that is why, we can have a mother's day, mother's week, even mother's month, and we will know that Indians will definately celebrate it.

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    1. आपके विचार का स्वागत है

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  2. लेख अच्छा और प्रासंगिक है इसे आधुनिक युवा पीढ़ी में आत्मार्पित की अधिक आवश्यकता है।

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  3. No need to celebrate a Special Day as a Mother Day Because Every day Is a Mother Day in India.

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