ईसाई नववर्ष - इतिहास और विस्तृत जानकारी
ईसाई नववर्ष न तो वैज्ञानिक गणनाओं में लाभदायक है और न ही इतिहास की दृष्टि में। अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ईसाई नववर्ष एक कल्पना है जोकि धार्मिक त्यौहार तो हो सकता है लेकिन खगोलीय घटना से कोई जुड़ाव नहीं है। एक जनवरी को भारत में धूमधाम से मनाती नई पीढ़ी को यह पता होना आवश्यक है कि ईसाई नववर्ष कोई एकमात्र नववर्ष नहीं है जो विश्व में मनाया जाता है बल्कि वैचारिक गुलाम बनाने का एक जरिया मात्र है
जिस ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष 1 जनवरी को नववर्ष मनाते हैं वह कैलेंडर ईसाई धर्म द्वारा प्रचलित कैलेंडर है जिसका मौजूदा स्वरूप आज से लगभग 500 वर्ष पहले ही अस्तित्व में आया है । भारत में काफी प्राचीन समय से कैलेंडर का उपयोग होता आया है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सटीक गणनाओं में सक्षम अपने प्राचीन पद्धति को हटाकर तमाम अशुद्धियों वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर को हमने तब अपनाया जब सारे फैसले अंग्रेज लिया करते थे। वैचारिक गुलाम बनाने का यह कदम स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी हमसे अलग न हो सका।
एक जनवरी को मनाये जाने वाला नववर्ष दुनिया में मनाये जाने वाला सबसे बड़ा नववर्ष है, यह व्यापारिक दृष्टि से स्थापित एक तथ्य है जिसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। विश्व में अनेकों नववर्ष मनाये जाते हैं। यद्यपि नववर्ष नये उल्लास और नयी शुरुआत का दिन है, ये उल्लास, ये उत्साह दुनिया के अलग-अलग कोने में अलग-अलग दिन मनाया जाता है क्योंकि दुनिया भर में कई कैलेंडर हैं और हर कैलेंडर का नया साल अलग-अलग होता है । दुनिया भर में पूरे ७० नववर्ष मनाए जाते हैं । दिलचस्प बात यह है कि आज भी पूरी दुनिया कैलेण्डर प्रणाली पर एकमत नहीं हैं । इक्कीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक युग में इंसान अन्तरिक्ष में जा पहुँचा है, मगर कहीं सूर्य पर आधारित, कहीं चन्द्रमा पर आधारित तो कहीं सूर्य, चन्द्रमा और तारों की चाल पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दुनिया में विभिन्न कैलेण्डर प्रणालियाँ लागू हैं । यही वजह है कि अकेले भारत में पूरे साल तीस अलग-अलग नव वर्ष मनाए जाते हैं । दुनिया में सर्वाधिक प्रचलित कैलेण्डर ‘ग्रेगोरियन कैलेण्डर’ है । जिसे पोप ग्रेगरी तेरह ने 24 फरवरी, 1582 को लागू किया था । यह कैलेण्डर 15 अक्तूबर, 1582 में शुरू हुआ । इसमें अनेक त्रुटियाँ होने के बावजूद भी कई प्राचीन कैलेण्डरों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आज भी मान्यता मिली हुई हैं ।
एक जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है । इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई है । पारंपरिक रोमन कैलेंडर का नववर्ष एक मार्च से शुरू होता है । प्रसिद्ध रोमन सम्राट जूलियस सीजर ने 47 ईसा पूर्व में इस कैलेंडर में परिवर्तन किया और इसमें जुलाई माह जोड़ा । इसके बाद उसके भतीजे के नाम के आधार पर इसमें अगस्त माह जोड़ा गया । दुनिया भर में आज जो कैलेंडर प्रचलित है, उसे पोप ग्रेगोरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था । ग्रेगोरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान किया था ।
ईसाइयों का ही एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च तथा इसके अनुयायी ग्रेगोरियन कैलेंडर को मान्यता न देकर पारंपरिक रोमन कैलेंडर को ही मानते हैं । इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है । इस कैलेंडर की मान्यता के अनुसार जॉर्जिया, रूस, यरूशलम, सर्बिया आदि में 14 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है
इस्लाम धर्म के कैलेंडर को हिजरी साल के नाम से जाना जाता है । इसका नववर्ष मोहर्रम माह के पहले दिन होता है । मौजूदा हिजरी संवत 1430 इस साल 30 दिसंबर को शुरू हुआ था । हिजरी कैलेंडर कर्बला की लड़ाई के पहले ही निर्धारित कर लिया गया था । मोहर्रम के दसवें दिन को आशूरा के रूप में जाना जाता है । इसी दिन पैगम्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन बगदाद के निकट कर्बला में शहीद हुए थे । हिजरी कैलेंडर के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इसमें चंद्रमा की घटती - बढ़ती चाल के अनुसार दिनों का संयोजन नहीं किया गया है । लिहाजा इसके महीने हर साल करीब 10 दिन पीछे खिसकते रहते हैं । आज के समय में हिजरी सन् सबसे अशुद्ध सन् है जो किसी भी वैज्ञानिक दृष्टि से ठीक नही है ।
यदि पड़ोसी देश और देश की पुरानी सभ्यताओं में से एक चीन की बात करें तो वहाँ का भी अपना एक अलग कैलेंडर है । तकरीबन सभी पुरानी सभ्यताओं के अनुसार चीन का कैलेंडर भी चंद्रमा गणना पर आधारित है । इसका नया साल 21 जनवरी से 21 फरवरी के बीच पड़ता है । चीनी वर्ष के नाम 12 जानवरों के नाम पर रखे गए हैं । चीनी ज्योतिष में लोगों की राशियाँ भी 12 जानवरों के नाम पर होती हैं । लिहाजा यदि किसी की बंदर राशि है और नया वर्ष भी बंदर आ रहा हो तो वह साल उस व्यक्ति के लिए विशेष तौर पर भाग्यशाली माना जाता है ।
जापानी
नव वर्ष ‘गनतन-साईं’
या ‘ओषोगत्सू’ के नाम से
भी जाना जाता है । महायान बौद्ध ०७ जनवरी, प्राचीन स्कॉट में
11 जनवरी, वेल्स के इवान वैली में नव
वर्ष 12 जनवरी, सोवियत रूस के
रुढि़वादी चर्चों, आरमेनिया और रोम में नववर्ष 14 जनवरी को होता है । वहीं सेल्टिक, कोरिया, वियतनाम, तिब्बत, लेबनान और
चीन में नव वर्ष 21 जनवरी को प्रारंभ होता है । प्राचीन
आयरलैंड में नववर्ष 1 फरवरी को मनाया जाता है तो प्राचीन रोम
में १ मार्च को । भारत में नानक शाही कैलेण्डर का नव वर्ष 14
मार्च से शुरू होता है । इसके अतिरिक्त ईरान, प्राचीन रूस
तथा भारत में बहाई, तेलुगू तथा जमशेदी (जोरोस्ट्रियन) का नया
वर्ष 21 मार्च से शुरू होता है । प्राचीन ब्रिटेन में नव
वर्ष 25 मार्च को प्रारंभ होता है ।
प्राचीन फ्रांस में एक अप्रैल से अपना नया साल प्रारंभ करने की परंपरा थी । यह दिन अप्रैल फूल के रुप में भी जाना जाता है । थाईलैंड, ब र्मा, श्रीलंका, कम्बोडिया और लाओ के लोग ०७ अप्रैल को बौद्ध नववर्ष मनाते हैं । वहीं कश्मीर के लोग अप्रैल में । भारत में वैशाखी के दिन, दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों, बंगलादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, कम्बोडिया, नेपाल, बंगाल, श्रीलंका व तमिल क्षेत्रों में, नया वर्ष १४ अप्रैल को मनाया जाता है । इसी दिन श्रीलंका का राष्ट्रीय नव वर्ष मनाया जाता है । सिखों का नया साल भी 14 अप्रैल को मनाया जाता है । बौद्ध धर्म के कुछ अनुयायी बुद्ध पूर्णिमा के दिन १७ अप्रैल को नया साल मनाते हैं । असम में नववर्ष 15 अप्रैल को, पारसी अपना नववर्ष २२ अप्रैल को, तो बेबीलोनियन नव वर्ष 24 अप्रैल से शुरू होता है । प्राचीन ग्रीक में नव वर्ष २१ जून को मनाया जाता था । प्राचीन जर्मनी में नया साल 29 जून को मनाने की परंपरा थी और प्राचीन अमेरिका में 1 जुलाई को । इसी प्रकार आरमेनियन कैलेण्डर 9 जुलाई से प्रारंभ होता है जबकि म्यांमार का नया साल 21 जुलाई से ।
नववर्ष
की चर्चा करते समय यह भी आवश्यक है कि युवा पीढ़ी भारतीय कैलेंडर के महत्त्व को
समझें क्योकिं यह वर्तमान में गणित गणनाओं पर आधारित एवं खगोलीय घटनाओं से जुड़ा सबसे
सटीक कैलेंडर है। भारत भी कैलैंडरों के मामले में कम समृद्ध नहीं है । इस समय देश
में विक्रम संवत, शक संवत, फसली संवत, बांग्ला
संवत, बौद्ध संवत, जैन संवत, खालसा संवत, तमिल संवत, मलयालम
संवत, तेलुगु संवत आदि तमाम साल प्रचलित हैं । इनमें से हर
एक के अपने अलग-अलग नववर्ष होते हैं । देश में सर्वाधिक प्रचलित संवत विक्रम और शक
संवत है । विक्रम संवत गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उज्जयनी में शकों को पराजित
करने की याद में शुरू किया था । यह संवत 57 ईसा पूर्व शुरू
हुआ था । विक्रम संवत के अनुसार नववर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को
आता है और इसी से यह संवत शुरू होता है । इसी समय चैत्र नवरात्र प्रारंभ होता है ।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन उत्तर भारत के अलावा गुड़ी पड़वा और उगादी के रूप में
भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष मनाया जाता है । सिंधी लोग इसी दिन चेटी
चंद्र के रूप में नववर्ष मनाते हैं ।
शक सवंत को शालीवाहन शक संवत के रूप में भी जाना जाता है । माना जाता है कि इसे शक सम्राट कनिष्क ने 78 ई। में शुरू किया था । स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत में मामूली फेरबदल करते हुए इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में अपना लिया । राष्ट्रीय संवत का नव वर्ष 22 मार्च को होता है जबकि लीप ईयर में यह 21 मार्च को होता है ।
सही मायनें में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाये जाने वाला नववर्ष ही असली नववर्ष है क्योकिं प्राकृतिक चक्र इसी दिन पूरा होता है। सर्द ऋतू के बाद पतझड़ समाप्त होने पर जब प्रकृति पुनः नये रंग दिखाती है, पेड़ों पर नये पुष्प खिलते हैं, जो बताता है कि चक्र पुनः शुरू हो चुका है।
अगर
निज संस्कृति की उपेक्षा किये बिना किसी अन्य सांस्कृतिक त्यौहार में शामिल होकर
ख़ुशी मनाई जाए तो गलत नहीं है। नववर्ष चाहे एक जनवरी को मनाई जाये या 1 अप्रैल को,
ये लोगों की अपनी समझ है और अपना फैसला। हां, ईसाई नववर्ष को ही सिर्फ नववर्ष समझ
लेना गलती है। इस आर्टिकल को पढकर अब नववर्ष मनाने के अनेको मौकों से आप परिचित
हैं। इसलिए वैचारिक गुलामी से पीछा छुड़ाकर स्वयं की संस्कृति से परिचित अवश्य हो
जाइये और धूमधाम से नववर्ष मनाईये।
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