प्राचीन शहर रोम का इतिहास और उससे जुड़ी कहानियाँ
इटली की राजधानी रोम एक प्राचीन शहर होने के
साथ साथ इतिहास के प्राचीन एतिहासिक रोमन साम्राज्य का केंद्र बिंदु भी है और
लुप्त हो चुके रोमन धर्म का उत्पत्ति स्थल भी. यूरोप और पश्चिमी एशिया के इतिहास
में रोम प्रमुख है. जितना पुराना रोम है उतनी ही ज्यादा उसकी कहानियां और कहानियों
से ही भारत के लिए रोम रुचिपूर्ण शहर बन जाता है
पश्चिमी
दुनिया
यानि
यूरोप
और
अमेरिका
(अमेरिका
में
यूरोप
के
लोग
ही
बसे
इसलिए
| अमेरिका के मूल लोग अब संख्या में कम हैं) स्वयं
को
जिस
संस्कृति
का
हिस्सा
मानते
हैं
उसकी
शुरुआत
ग्रीस
(यूनान)
के
एथेंस
शहर
को
मानते
हैं।
कहते
हैं
कि
पश्चिमी
दुनिया
में
जब
सभी
जगह
जंगली
मानव
था
यानि
उसका
स्वभाव
पशु
की
तरह
था
तब
सिर्फ
एथेंस
के
लोग
सभ्य
थे।
एथेंस
ही
वो
शहर
है
जहाँ
से
ओलिंपिक
खेल
शुरू
हुए
हैं।
यूनान
से
ही
निकलकर
सिकन्दर
ने
दुनिया
जीतने
का
सपना
पाला
और
सेना
लेकर
उस
समय
के
हिसाब
से
एक
बड़ा
भूभाग
पर
विजय
प्राप्त
करते
हुए
सिन्धु
नदी
के
पास
पहुँचा
और
पोरस
से
हारकर
उसका
अभियान
समाप्त
हुआ।
चूँकि
हम
बात
कर
रहे
हैं
रोम
कि
तो
हमारा
ध्यान
रोम
और
रोमन
सम्राज्य
पर
ही
रहेगा
न
की
ग्रीस
पर।
इटली
और
ग्रीस
दोनों
पड़ोस
में
है
लेकिन
ग्रीस
पुराना
है।
आज
एक
पंक्ति
भारत
में
विख्यात
है
कि
मिस्त्र,
यमन
और
रोमां,
सब
मिट
गये
जहां
से
अब
तक
मगर
है
बाकि
नामोनिशां
हमारा
आज
सबसे
बड़ा
दुर्भाग्य
यही
है
कि
भारत
की
तरह
रोम
का
इतिहास
सुरक्षित
नही
रहा।
रोम
का
इतिहास
मिट
चुका
है।
इसका
कारण
है
बड़े
पैमाने
पर
युद्ध,
नरसंहार
और
विध्वंश।
आज
जो
भी
रोम
का
इतिहास
हमें
पता
है
वो
पक्का
नही
है।
अनुमानों
पर
आधारित
है
जोकि
वहां
के
बाकि
बचे
शिलालेखों
और
कुछ
ग्रंथों
से
है
या
फिर
किस्से
कहानियों
से
है।
रोम
स्वयं
में
एक
शहर,
एक
सम्राज्य
का
मुख्य
केंद्र
जिसे
रोमन
सम्राज्य
कहते
थे,
और
एक
संस्कृति
है
जिसे
रोमन
संस्कृति
कहते
हैं।
भारत
का
कोई
एक
शहर
केंद्र
नही
है
और
शायद
इसीलिए
विदेशी
दुश्मनों
को
पता
ही
नही
लग
पाया
कि
किस
शहर
को
मिटाने
से
भारत
समाप्त
होगा।
जबकि
रोम
का
भाग्य
इतना
अच्छा
नही
था।
कहते
हैं
कि
रोम
जब
संस्कृति
के
रूप
में
फल
फुल
रहा
था
तो
उसके
पास
सिर्फ
ग्रीस
ही
था
जिसका
कुछ
प्रभुत्व
था।
रोम
के
लोग
मूर्तिपूजक
थे
और
एक
अलग
ही
धर्म
का
पालन
करते
थे।
वो
धर्म
कुछ
कुछ
हिन्दू
धर्म
जैसा
था
क्योकि
उसमें
वायु
का
देवता
भी
था
और
अग्नि
देवता
भी।
सागर
का
देवता
भी
था
और
सूर्य
की
पूजा
भी।
कहने
का
अर्थ
था
कि
वर्तमान
के
सभी
धर्म
सिवाय
हिन्दू
के,
एक
ईश्वर
में
विश्वास
रखते
हैं
जबकि
रोम
के
लोग
अलग
अलग
भगवानों
या
देवता
की
पूजा
करते
थे।
यह
भी
पता
चला
है
कि
जब
प्रथ्वी
पर
ईसाई
और
इस्लाम
नही
था
तब
हिन्दू
धर्म,
यूनानी
धर्म,
रोमन
धर्म,
फारसी
धर्म
और
यहूदी
धर्म
मौजूद
था।
अगर
देवताओं
और
पूजा
पद्धति
की
बात
करें
तो
हिन्दू
धर्म
की
छाप
सभी
धर्मो
में
दिखती
थी।
इसका
एक
कारण
इन
सबका
भारत
से
सम्पर्क
और
आर्य
संस्कृति
का
हिस्सा
होना
था।
रोमन
देवताओं
में
एक
मार्स
हैं
जो
युद्ध
के
देवता
हैं।
यूनानी
सभ्यता
में
इन्हें
ही
एरिस
देवता
कहा
गया
है।
वीनस
रोमन
धर्म
में
एक
देवी
थी
जो
प्रेम,
खूबसूरती
और
मिलाप
की
देवी
थी
यानि
एक
प्रकार
से
भारत
का
कामदेव।
यूनानी
सभ्यता
में
इन्हें
एफ्रोडाइटी
कहा
गया
है।
डायना
रोमन
धर्म
में
शिकार,
जंगल
या
जंगली
जानवर
की
देवी
थीं।
बाद
में
चाँद
की
देवी
के
रूप
में
उन्हें
जाना
गया।
इसके
साथ
ही
प्लेटो,
मरक्युरी,
जुपिटर,
अपोलो,
नेप्चून
आदि
भी
रोमन
देवता
हैं।
इन्हें
आज
ग्रहों
के
नाम
के
रूप
में
जाना
जाता
है।
इसी
प्रकार
एक
जेनस
भी
देवता
हैं
जिनके
उपर
जनवरी
माह
को
नाम
दिया
गया।
भारत
में
शनि
एक
देवता
हैं
जो
न्याय
के
देवता
हैं
जबकि
रोमन
धर्म
में
सैटर्न
एक
देवता
थे
जिन्हें
कृषि
से
जोड़कर
देखा
जाता
था।
रोम
शहर
बनने
के
बाद
धीरे
धीरे
इटली
के
अंदर
अन्य
राज्य
बनने
लगे।
ये
शुरुआत
में
आपस
में
लड़ते
थे
और
बाद
में
एक
संयुक्त
राष्ट्र
का
रूप
ले
लिया।
ग्रीस
के
राजा
सिकन्दर
के
मरने
के
बाद
रोम
ने
प्रगति
की।
उसने
यूनान
से
अपने
राज्य
वापस
ले
लिए
और
फिर
धीरे
धीरे
आगे
कदम
बढाये।
यूरोप
के
बड़े
हिस्से
पर
रोम
का
अधिपत्य
हो
गया। पश्चिमी
में
पुर्तगाल
तक
और
पूर्व
में
फारस
तक
रोमन
राज्य
फैला
और
रोमन
साम्राज्य
कहलाया।
रोमन
साम्राज्य
ने
अपना
विस्तार
युद्धों
के
जरिए
किया
जिसके
दो
परिणाम
निकले।
या
तो
वो
संस्कृति
नष्ट
हो
गयी
जिधर
रोमन
गये
और
युद्ध
जीते
या
फिर
जिस
युद्ध
में
रोमन
हारे,
रोमन
स्वयं
नष्ट
हो
गये।
कहते
हैं
कि
रोमन
लोगों
ने
वर्तमान
के
इजराइल
की
तरफ
जब
कूच
किया
था
तो
उनका
निशाना
येरुशलम
था।
उस
समय
येरुशलम
यहूदी
धर्म
का
केंद्र
था।
रोमन
लोगों
ने
येरुशलम
पर
सन
66 में
जीत
हासिल
की।
सन
135 में
रोमन
लोगों
ने
भारी
कत्लेआम
किया,
यहूदी
मंदिर
को
ध्वस्त
कर
दिया।
कहते
हैं
कि
तब
येरुशलम
के
एक
एक
नागरिक
की
हत्या
कर
दी
गयी।
येरुशलम
शहर
को
तोड़कर
समतल
कर
दिया
गया।
रोम
गणतंत्र
के
रूप
में
भी
विख्यात
रहा
है।
जिस
प्रकार
भारत
में
वैशाली
सबसे
प्राचीनतम
गणतंत्र
है
उसी
प्रकार
पश्चिम
में
रोम
प्राचीन
गणतंत्र
में
से
एक
है।
हालाँकि
गणतंत्र
हमेशा
नही
रहा
और
509
ईसा
पूर्व
से
45 ईसा
पूर्व
तक
ही
रहा।
इसके
बाद
जुलियस
सीजर
राजा
बने
और
गणतंत्र
खत्म
कर
दिया।
यह
कहा
जाता
है
कि
जुलियर
सीजर
जिस
समय
रोम
के
सम्राट
थे
उस
समय
भारत
में
राजा
विक्रमादित्य
का
शासन
था।
विक्रमादित्य
चक्रवर्ती
बनना
चाहते
थे
इसलिए
उन्होंने
दिग्विजय
के
लिए
महान
सेना
बनाई
जिसमें
थल
सेना
और
विशाल
जल
सेना
थी।
विक्रमादित्य
ने
अपने
सैनिकों
को
सभी
जगह
भेजा
और
सभी
राजाओं
से
हार
स्वीकार
करवाई।
उसी
काल
खंड
में
रोम
ने
जब
हार
स्वीकार
नही
की
तो
जुलियर
सीजर
को
बंदी
बनाकर
उज्जैन
की
गलियों
में
घुमाया
गया।
इसके
बाद
विक्रमादित्य
चक्रवर्ती
राजा
कहलाये
और
उन्होंने
अपने
शासन
काल
में
आज
के
अफ़ग़ानिस्तान,
ईरान,
इराक
में
गुरुकुल
और
मन्दिर
बनवाये।
रोम
का
साम्राज्य
जब
बढ़ा
तो
अफ्रीका
तक
जा
पहुंचा
और
इजराएल
तक
जीत
हासिल
की।
तब
तक
ग्रीस
भी
दम
तोड़
चूका
था।
ऐसे
में
सिर्फ
फारस
ही
एकमात्र
सम्राज्य
था
जो
रोमन
साम्राज्य
के
सामने
चुनौती
दे
रहा
था।
जब
रोम
सम्राज्य
बड़ा
हो
गया
तो
दो
हिस्सों
में
बंट
गया
पूर्वी
और
पश्चमी।
रोम
पश्चिमी
साम्राज्य
की
राजधानी
बन
गया।
सन
476 इस्वी
में
पश्चिमी
साम्राज्य
ने
दम
तोड़
दिया
और
रोम
भी
नष्ट
हो
गया।
रोम
के
नष्ट
होने
के
पीछे
कई
कारण
थे।
आपसी
गृह
युद्ध
ने
सबसे
ज्यादा
नुकसान
पहुँचाया।
हालाँकि
पूर्वी
रोमन
साम्राज्य
जोकि
तुर्की
से
संचालित
था,
सन
1453 तक
बना
रहा।
रोमन
साम्राज्य
ने
कई
संस्कृतियों
को
नष्ट
किया।
यहूदियों
के
इजराएल
को
नष्ट
करने
के
बाद
यहूदी
यहाँ
बस
नही
पाए
और
उनका
इंतजार
कई
सदियों
बाद
सन 1948 में
समाप्त
हुआ।
लेकिन
जब
रोम
का
नष्ट
होना
शुरू
हुआ
तो
वो
भी
भयानक
था।
रोम
को
सबसे
ज्यादा
नुकसान
ईसाईयों
ने
पहुँचाया।
ईसाई
धर्म
के
लोगों
और
रोमन
धर्म
में
मतभेद
था
जो
युद्ध
का
कारण
बना।
बाद
में
धीरे
धीरे
ईसाईयों
ने
रोमन
धर्म
को
समाप्त
करना
शुरू
किया।
रोमन
मन्दिर
ध्वस्त
कर
दिए
गये,
मूर्तियाँ
तोड़
दी
गयी
और
पूजा
पद्धति
पर
प्रतिबन्ध
लगा
दिया
गया।
ग्रंथों
को
जला
दिया
गया
और
चर्च
बना
दिए
गये।
रोमन
सम्राज्य
रोमन
धर्म
के
समाप्त
होते
ही
दम
तोड़ने
लगा।
हालाँकि
रोमन
लोगों
ने
स्वयं
को
ईसाई
धर्म
से
बचाने
की
कोशिश
की।
ईसाईयों
को
कड़ी
सजा
दी
जाती
थी
और
ईसाई
रीतिरिवाजों
पर
प्रतिबन्ध
था
लेकिन
सन 313 ईसवी
में
रोमन
राजा
कांस्टेटाइन
ने
ईसाई
धर्म
स्वीकार
कर
लिया
और
क़ानूनी
मान्यता
दे
दी।
ईसाई
धर्म
ने
इसको
एक
अच्छी
उपलब्धी
माना
और
जल्द
ही
अपने
विस्तार
पर
जोर
दिया।
जल्द
ही
पुरे
रोम
और
सम्राज्य
में
चर्च
बना
दिए
गये
और
सन 391 ईसवी
में
ईसाई
इतने
मजबूत
हो
गये
कि
रोमन
धर्म
पर
ही
प्रतिबन्ध
लगा
दिया।
रोमन
देवताओं
की
पूजा
पर
भयानक
सजा
दी
जाती
थी।
रोमन
धर्म
का
समाप्त
होना
ही
रोमन
सम्राज्य
का
समाप्त
होना
साबित
हुआ।
पूर्वी
रोमन
साम्राज्य
काफी
दिन
तक
चलता
रहा
उसका
एक
कारण
ईसाईयों
का
अधिपत्य
स्वीकार
कर
लेना
और
फारस
से
संधि
था।
अब
बात
करते
हैं
कुछ
ऐसे
प्रसंगों
की
जिसे
हम
रोम
के
बारे
में
पढ़ते
हैं।
दास
प्रथा
को
लेकर
एक
कहानी
भारत
में
प्रचलित
है
कि
एक
व्यक्ति
को
कांटे
से
घायल
शेर
एक
गुफा
में
मिलता
है।
व्यक्ति
कांटे
को
निकाल
देता
है।
कुछ
दिन
बाद
उस
व्यक्ति
को
दास
बना
लिया
जाता
है
और
मनोरंजन
के
लिए
भूखे
शेर
के
सामने
रख
दिया
जाता
है।
लेकिन
यह
वही
शेर
होता
है
जिसको
कांटा
लगा
था
और
वह
व्यक्ति
को
पहचान
लेता
है।
इस
कहानी
से
यह
भी
पता
चलता
है
कि
रोम
में
दास
प्रथा
चरम
पर
थी।
एक
कहावत
जो
हम
सुनते
हैं
कि
“जब
रोम
जल
रहा
था
तब
नीरो
बंसी
बजा
रहा
था”।
यह
कहावत
सत्ताधारी
व्यक्ति
के
अपने
उत्तरदायित्वों
को
न
निभाने
को
लेकर
इस्तेमाल
की
जाती
है।
दरअसल
सन
64 में
रोम
में
भयानक
आग
लग
गयी।
कहते
हैं
इस
आग
की
खबर
पता
चलने
पर
भी
नीरो
राजा
उदासीन
रहा
और
वायलिन
या
बंशी
बजाता
रहा।
हालाँकि
कुछ
कहते
हैं
कि
यह
खबर
झूठ
है
और
नीरों
ने
आग
बुझाने
के
आदेश
दिए
थे।
रोम
बना,
ध्वस्त
हुआ,
फिर
खड़ा
हुआ
और
फिर
टुटा।
आज
इटली
की
राजधानी
प्राचीन
रोम
से
काफी
बड़ी
है।
आज
के
रोम
में
कुछ
ही
दीवारे
और
खंडहर
हैं
जो
प्राचीन
रोम
की
गवाही
देते
हैं।
रोम
को
कई
बार
आक्रमण
झेलने
पड़े
और
ध्वस्त
होना
पड़ा।
आज
रोमन
धर्म
के
कुछ
ग्रन्थ
हैं
जोकि
पंचतंत्र
की
कहानियों
की
पुस्तक
से
भी
कम
पन्नों
के
हैं
यानि
कुछ
सैकड़ों
पन्नों
में
रोमन
धर्म
के
ग्रन्थ
सिमटे
हुए
हैं।
यह
धर्म
आज
भी
है
लेकिन
बहुत
कम
लोग
इसे
मानते
हैं।
इटली
में
वेटिकन
सिटी
नाम
से
एक
शहर
को
देश
का
दर्जा
प्राप्त
है
जो
अब
ईसाईयों
का
सबसे
बड़ा
गढ़
है
क्योकि
यहाँ
पोप
रहते
हैं।
पोप
ईसाईयों
के
सबसे
बड़े
नेता
हैं।
पोप
सिर्फ
धार्मिक
ही
नही
बल्कि
राजनैतिक
नेता
भी
हैं।
अलग
अलग
देशों
में
बिशप
और
उनसे
जुड़े
गिरजाघर
कहने
को
तो
धार्मिक
हैं
लेकिन
एक
सच्चाई
यह
भी
है
कि
ये
लोग
दूतावास
के
तौर
पर
कार्य
करते
हैं।
आज
इटली
अपने
इतिहास
पर
गर्व
तो
करता
होगा
लेकिन
वर्तमान
में
खुश
है।
अगर
गर्व
करे
तो
भी,
अब
न
वो
रोमन
हैं,
न
उनके
बारे
में
स्पष्ट
जानकारी,
न
उनकी
धरोहर।
This is very good historical passage thanks bro for this
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