भारतीय समाज में अंतर्निहित समरसता, समग्रता या समावेशिता
भारतीय राजनीतिक सिद्धांत जिस दर्शन के आधार पर खड़े हुए हैं उनमें ऐसी सामाजिक मूल्य समाहित हैं जोकि वर्तमान का न सिर्फ आवश्यक तत्व है बल्कि इसके लिए पश्चिमी जगत काफी प्रयास कर रहा है। इन्हीं मे से एक है समग्रता। सामाजिक समरसता समाज का वह आवश्यक तत्व है जिसके न होने पर समाज में अनेक विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। विभिन्न समस्याओं का उद्भव समाज कि इस आम स्थिति से ही होता है जहां विभिन्न मत, पंथ और वर्ग होते हैं परंतु सभी को साथ लेकर चलने वाली व्यवस्था नहीं होती। पश्चिमी जगत अनेक समस्याओं कि जड़ इसी स्थिति को मानता है इसलिए हमें आवश्यकता पड़ती है एक नए शब्द के बारे में पढ़ने कि जो सामाजिक समरसता या समग्रता कहलाती है। Inclusiveness शब्द आजकल पश्चिमी जगत में काफी ट्रेंड में है और न सिर्फ अपने स्तर पर बल्कि दूसरे देशों को भी इसी शब्द पर काफी ज्ञान दिया जा रहा है। क्या वाकई सामाजिक समरसता को बनाने के लिए हमें कुछ विशेष उपाय करने चाहिए? क्या सामाजिक समग्रता को हमारे समाज में स्थापित करना चाहिए? सीधा सा उत्तर है कि यह हमारे समाज का काफी पहले से ही अभिन्न हिस्सा रहा है। भारतीय परंपराओं में, रीतिरिवाज...